पिता दिहाड़ी मजदूर और मां बीमार फिर भी दोनों बनने जा रही हैं डॉक्टर।

गांव के गरीब परिवारों में अगर बेटियां पैदा हो जाए तो मां बाप व बाकी सदस्यों के जहन में उनकी शादी पर होने वाले खर्च का बोझ बना रहता है। जिसके चलते उनकी पढ़ाई पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता और 8 या 10वीं तक पढ़ा कर जल्द शादी करने की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। लेकिन एक दिहाड़ी मजदूर ने अपनी दोनों बेटियों को आर्थिक तंगी के बावजूद डॉक्टर बनाया है। Prince Eduhub की Toppers Tales में इस बार कहानी गरिमा और लीला की, जिन्होंने NEET UG में अच्छे मार्क्स के साथ अपने पिता का डॉक्टर बनने का सपना पूरा किया है। 

कहानी जोधपुर के दूरदराज के एक गांव, बेरु की दो बहनों की। पिता भोमाराम मजदूरी करते हैं और मां अक्सर बीमार रहती हैं। जिसके चलते घर की आर्थिक स्थिति कमजोर है। लेकिन इंसान का जज्बा और मेहनत उसे बुलंदियो तक पहुंचा देता है चाहे रास्ते में लाख अड़चनें आए। दोनों ने Prince Career Pionerr(PCP) में एडमिशन लिया और NEET UG में अच्छे मार्क्स के साथ दोनों डॉक्टर बनने जा रही हैं। PCP की स्टूडेंट लीला अभी डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद यूनिवर्सिटी, जोधपुर से BAMS कर रही हैं तो गरिमा ने NEET में 671/720 मार्क्स के साथ गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में MBBS कर रही हैं। 

लोगों ने ताने मारे।

Prince Digital की टीम से बात करते हुए लीला और गरिमा के पिता ने बताया,”हमारे गांव में लड़कियों को 5 या 8वीं से ज्यादा पढ़ाते नहीं हैं और अगर आगे की पढ़ाई जारी रहे तो बाहर पढ़ने पर जोर नहीं दिया जाता। लेकिन जब मैंने अपनी बेटियों को पढ़ने के लिए बाहर भेजा तो लोगों ने ताने मारे कि कैसे तुमने अपनी बेटियों को बाहर भेज दिया?, तुम्हें चिंता नहीं है? उन्होंने कहा कि मैंने अपनी दोनों बेटियों को PCP में पढ़ने के लिए भेजा तो मुझे कोई चिंता नहीं थी, यहां का माहौल बहुत अच्छा है, मोबाइल पर पाबंदी है, जिससे बच्चे अच्छे से पढ़ाई में मन लगाकर पढ़ सकते हैं। 

शुरू में कोटा गयीं पढ़ने, लेकिन दिक्कतें आईं: गरिमा

गरिमा ने बताया कि लीला पहले कोटा गयी थी तैयारी के लिए लेकिन वहां दिक्कतें आईं तो हम दोनों ने फिर सीकर आकर PPC में डे स्कॉलर के तौर पर एडमिशन लिया क्योंकि आर्थिक स्थिति कमजोर थी। हमने बाहर हॉस्टल में रहकर कोचिंग ली लेकिन वहां अच्छे से पढ़ाई नहीं हो पा रही थी, समय पर खाना न मिलना, बाहर का डिस्टर्बेंस और एक रूटीन न होने के चलते मेरे पहले अटेम्प्ट में 441/720 मार्क्स हासिल हुए। मैं हिम्मत हार गई थी, पापा ने भी कहा कि आगे हम नहीं पढ़ा पाएंगे। लेकिन PCP के मैनेजमेंट ने हमारी मदद की और हमें PCP के हॉस्टल में एडमिशन मिल गया।

हॉस्टल में सेल्फ स्टडी ने मनोबल बढ़ाया: गरिमा

उन्होंने बताया कि जब हमें PCP के अंदर हॉस्टल मिला तो हमारी तैयारी को पंख लग गए। सुबह 5 बजे उठना, 6 बजे ब्रेकफास्ट, 7 बजे 3 बजे तक क्लास, इसके बाद डाउट सेशन और शाम को डिनर के बाद 11 बजे तक सेल्फ स्टडी सेशन ने हमारी स्टडी रूटीन को बदल दिया। जिसके बाद दूसरे अटेंप्ट में मैंने 671/720 मार्क्स हासिल किये, जिसका श्रेय PCP के मैनेजमेंट और फ़ैकल्टी को जाता है।

PCP के नोट्स के अलावा कुछ नहीं पढ़ा: गरिमा

गरिमा ने आगे बताया कि PCP की फ़ैकल्टी मेंबर, मैनेजमेंट, यहां का इंफ्रास्ट्रक्चर एक स्टूडेंट्स में पढ़ाई का जुनून भर देता है। उन्होंने बताया कि किसी भी वक्त हम टीचर से तैयारी के दौरान आये डाउट को क्लियर कर सकते थे। क्लास रूम में एयर कंडीशन, डिजिटल बोर्ड, डिजिटल लाइब्रेरी में हर वक्त रिकॉर्डेड क्लास सेशन की सुविधाओं ने कॉन्फिडेंस बढ़ाया। उन्होंने कहा कि हमने तैयारी के दौरान टीचर्स के द्वारा दिये जाने वाले नोट्स व मोड्यूल के अलावा कुछ नहीं पढ़ा और इसी के साथ अच्छा रैंक हासिल किया।

PCP का स्टडी रूटीन

गरिमा ने बताया कि सुबह 5 बजे से लेकर 11 बजे तक PCP में स्टडी रूटीन रहता है। जोकि इस प्रकार है।

  • 5 बजे उठना साथ मे ब्रेकफास्ट
  • 6 बजे से लेकर दोपहर के 1:20 तक क्लासरूम
  • लंच के बाद 3 बजे से लेकर 7:30 बजे तक सेल्फ स्टडी
  • डिनर के बाद रात के 8 बजे से लेकर 11 बजे तक सेल्फ स्टडी।

लगातार मॉक टेस्ट लिया जाता है: गरिमा

उन्होंने कहा कि PCP में लगातार मॉक टेस्ट(P-AITS) पर विशेष ध्यान दिया जाता है। टेस्ट में मार्क्स के हिसाब से स्टूडेंट की मॉनिटरिंग की जाती है। इसके साथ ही हर टेस्ट में मार्क्स की डिटल्स पेरेंट्स के साथ साझा की जाती है। 

मोटिवेशनल सेमिनार जरूर लगाएं: गरिमा

गरिमा ने आगे बताया कि कई बार पढ़ाई करते करते या टेस्ट में अच्छे मार्क्स नहीं आने पर हम सभी का मनोबल कम हो जाता था। ऐसे में PCP में समय समय पर आयोजित होने वाले मोटिवेशनल सेमिनार से हम कॉन्फिडेंट महसूस करते थे। मेरी सभी एस्पिरेन्ट्स से सलाह है कि जब भी डिमोटिवेट महसूस हो अपने टीचर्स से, मैनेजमेंट या पेरेंट्स से बात करें। 

Conclusion 

गरिमा और लीला की कहानी उन सभी लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत है जिसका जन्म किसी गांव में हुआ है और वो डॉक्टर इंजीनियर या भारतीय सेना में ऑफिसर बनना चाहती है। क्योंकि इन दोनों बहनों ने आर्थिक हालातों का सामना करते हुए अपने सपनों को साकार करने में सफलता हासिल की है। PCP सीकर में हर साल ऐसी हजारों सफलता की कहानियां बनती है जो समाज में एक संदेश देती हैं कि अगर हौसले बुलंद हों तो आसमान में उड़ान भरने के लिए पंखों की जरूरत नहीं होती। अगर आप भी 10th या 12th के बाद डॉक्टर या इंजीनियर बनने का सपना देख रहे हैं तो Prince Edhub आपके सपनों को उड़ान दे सकता है। इसी साल Pricne Eduhub ने देश की गुलाबी नगरी जयपुर में अपनी ब्रांच शुरू की है। अधिक जानकारी के लिए प्रिंस की आधिकारिक वेबसाइट https://pcpsikar.com/ पर क्लिक करें।

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