बेंचमार्क दिव्यांगता वाले कैंडिडेट्स भी MBBS में एडमिशन के हकदार।

देश की सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार, 15 अक्टूबर को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 40-45% फीसदी बोलने व भाषा दिव्यांगता वाले कैंडिडेट्स को MBBS में एडमिशन का हकदार माना है। अपने एक आदेश में कोर्ट ने कहा कि बेंचमार्क डिसेबिलिटी के आधार पर किसी को MBBS करने से नहीं रोका जा सकता, जब तक डिसेबिलिटी असेसमेंट बोर्ड किसी कैंडिडेट को मेडिकल की पढ़ाई के लिए अक्षम नहीं मानता।

कोर्ट ने कहा कि केवल डिसेबिलिटी की मात्रा बता देने से किसी कैंडिडेट को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता और कोर्स को आगे बढ़ाने का जांच डिसेबिलिटी असेसमेंट बोर्ड द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के आधार पर की जानी चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि डिसेबिलिटी असेसमेंट बोर्ड की रिपोर्ट भी अंतिम नहीं है। इसे भी अपीलीय मंचों के निर्माण तक कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है।

जस्टिस विश्वनाथन द्वारा दिए गए फैसले में कहा गया,” केवल इसलिए कि कोई कैंडिडेट बोलने और भाषा के लिए 40 फीसदी या इससे अधिक डिसेबल है तो वह एडमिशन के लिए अपने अधिकार नहीं खोता है।

NMC के नियम सख्त हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एनएमसी( नेशनल मेडिकल कमीशन) के नियम काफी सख्त हैं जिसमें किसी कैंडिडेट को, जोकि विकलांगता के आधार पर उसे मेडिकल शिक्षा से बाहर करते हैं। कोर्ट ने एनएमसी को निर्देश दिया है कि वे इन नियमों को बदले और दिव्यांग वर्ग के कैंडिडेट्स के लिए इंक्लूसिव व सुपपोर्टिव अप्रोच अपनाएं।

मंगलवार, 18 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में एक कैंडिडेट को, जिसकी बोलने व भाषा से जुड़ी 45% डिसेबिलिटी है, MBBS में एडमिशन की परमिशन दी थी। कोर्ट द्वारा बनाये गए मेडिकल बोर्ड ने यह कहा था कि कैंडिडेट मेडिकल एजुकेशन के लिए सक्षम है, इसलिए इसे एडमिशन दिया जा सकता है। कोर्ट ने इसके बाद निर्देश दिया कि कैंडिडेट को उस सीट पर एडमिशन दिया जाए जिसे पहले वेकेंट रखा गया था।

प्रतिष्ठित लॉ न्यूज पोर्टल, लाइव लॉ के अनुसार पिटीशनर ने हाईकोर्ट में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा बनाये गए ग्रेजुएट मेडीकल एजुकेशन रेगुलेशन 1997 को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि 40 फीसदी या इससे ज्यादा डिसेबिलिटी वाले कैंडिडेट MBBS कोर्स के लिए एलिजिबल नहीं होंगे। उन्होंने तर्क दिया कि यह रूल व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 32 का उल्लंघन करता है और यह इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन के आर्टिकल 14, 15,19(1)(g), 21 और 29(2) के खिलाफ है। पिटीशनर ने इस नियम को असवैंधानिक घोषित करने की मांग की थी।

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